पहरे हैं

वो अनपढ़ है बच्चे, फिर भी खिलखिलाते चेहरे हैं..
बचपन अध्ययनशील नही, सच में घाव गहरे हैं...
दो जून खाने के पीछे, मिट जाती शिक्षा की रेखा..
प्रताड़ना के चाबुक के, इन पर भारी पहरे हैं..
Kavish

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