पहली कविता


उस दिन कोरे कागज पर बिखरी ,  वो खूबसूरत सुनहरी स्याही थी... 
वो दिन आज भी याद है , जब चांदनी भी कागज पर उतर आयी थी... 
शायद वो दिन न भूल पाउंगा मैं , 
क्यूंकि इसी दिन तो 'सुरांगना'  दुनिया में आई थी...
नवजात , चंचल , मासूम अबूझ सी , गोद में बैठाने खुद हिन्दी माँ आई थी...
दुलार करती उसे , 
फिर लोहरी सुनाती ,
 खुशी से आंखे भी मेरी तब भर आई थी..
कलम ने भी लिखे थे कई निमंत्रण ,
 सबको जो ये खुशी भिजवायी थी..
वो कोई 'शिशु'  नही नन्ही कविता थी मेरी , जो पहली बार पन्नों पर उतर आई थी...
पीछे चल रहे थे कई रिक्त पन्नें , आगे पर मेरी 'कविता' की अगुवाई थी...
😊कविश कुमार

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