कविता है वो

Meri 'kavita' hai wo - मेरी 'कविता' है वो.. 

मैं तो सिर्फ चलता हूँ ,  उङती है वो... 
शुरू करता हूँ जब लिखना , तो संवरती है वो..
लिखता हूँ जब मैं ,  तो मुझे देखती है वो.. 
मैं जब रूक जाता हूँ ,  तो रूकती है वो..
मैं साधु हूँ अगर , तो मेरी साधना है वो... 
मैं उलझन हूँ अगर ,  तो मेरी सुलझन है वो...
मैं प्यास हूँ अगर ,  तो पानी है वो.. 
मैं विश्वास हूँ अगर , तो कहानी है वो...
मैं वाद्य हूँ अगर ,  तो झंकार है वो... 
कोई पंक्ति हूँ मैं , तो अलंकार है वो.. 
मैं बच्चा हूँ अगर ,  तो दुलार है वो..
मैं शांत हूँ अगर , तो आत्मा की पुकार है वो..
चाहे मुझे कोई ज्ञान नहीं है.. 
क्या हूँ मैं ये भान नहीं है.. 
फिर भी मुझे जानती है वो.. 
पन्नों में से भी झांककर पहचानती है वो.. 
मैं जो ये इंसान हूँ ,  मेरी विनम्रता है वो.. 
न विद्वान न प्रखर कवि ,  फिर भी मेरी 'कविता' है वो.. 
😊कविश कुमार😊


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