शाम तो होने दो


महताब इठलायेगा यौवन पर , जवां थोड़ी शाम तो होने दो...
प्रेम ग्रंथ के भी पर लगेंगे , पन्ने पर तुम्हारा नाम तो होने दो...
फिर वो महताब फलक से, तुम्हारे पास जो उतरता है..
पास बैठ कर नदी किनारे, तुम्हारे साथ जो संवरता है...
वो अपनी से ज्यादा, तुम्हारी खूबसूरती पर बहकता है..
तो मन मेरा खूबसूरत कौन है, ये सवाल पूछ बैठता है..
जवाब दूंगा खुद को, एक व्यतिरेक अलंकार के साथ...
महताब तथा तुम्हे निहारते, एक रात बर्बाद तो होने दो..
हम भी चलें जाते हैं, शमा की अब लौ से कुछ बात होने दो..
😊कविश कुमार😊



Comments

Popular posts from this blog

कविता है वो

पहली कविता

याद सताती है