लाश बिछ जानी थी

बुद्धिमानों के सूरज को भी ढलते देखा है ...
कुछ बेईमानी के कीड़ों को भी मैंने पलते देखा है ...
धिक्कार करता हूं उन लोगों पर मैं ...
जिन के दिलों में मैनें संस्कारों को जलते देखा है...
आवाज ऊंची तो की घरवालों पर, फिर काहे की मरदानी थी...
मां को जिसने गाली दी, लाश वहीं बिछ जानी थी..
___ish

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