आपके लिए
प्रीत में डूबी बातों को, प्रेम रीत से कहती हो...
अहसासो का गुलिस्तां है, जहां तुम मुझमें रहती हो...
दरख्तों के साये में, तुम अपना साया बिछाती हो..
मैं हाथ थामे बैठता, तुम अपना गाया फिर गाती हो..
स्पर्श प्रेम को घोलकर, जो गुल चुन कर लाती हो..
स्वयं को सजाती हो, उस खुशबू में खो जाती हो..
जो हवा मुझ तक आती हो, संग तुम उसके बहती हो..
मेरे भीतर बेखौफ जगह, जहां तुम मुझमें रहती हो..
शमा रोशन जो तुम करो, हर दम दिल में जलती है..
सुबह चांद मुझे दिखता है, और हर शाम मुझमें ढलती है..
तुझमें मुझमें हो दूरियां, तो हर याद मुझमें पलती है..
याद, याद में खो जाती, तो हर बात मुझमें खलती है..
बात कभी लगती अपनी , हर बात पुरानी कहती हो..
मध्धिम-मध्धिम चलती हो, पर तुम मुझमें रहती हो..
पढूं मैं चेहरा कभी, चंचल तितली बन जाती हो..
अहसासो की भाषा को, पढ़-पढ़कर सो जाती हो..
कानों के सिरहाने हर्फ बोलकर, कितना मीठा तुम कह जाती है..
जैसे गिरती प्यास मेरी आंखों से, तुम्हे दिखने से बुझ जाती हो..
मैं बार-बार निहारा करूं बस, तुम पागल-पागल कहती हो..
जहां पहुंचती हवा मेरी सांसों की, वहां तुम मुझमें रहती हो..
_kavish
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