कांच के टुकड़े

दर्द की सिसकियों तले, जो मुश्किलों से उखड़े​ थे..
विरह राग तेरे जज्बातों का, सारे गम के मुखड़े थे...
जहां-जहां छलनी किया , तलवों की नाजुक जगह को. 
दर्द बिखर गया खून के साथ, पांवों में धंसे कांच के टुकड़े थे...
✍ Kavish

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