फ़ाश न कर

वक्ता हो ना तुम, यूं फिर मौनी उपवास न कर...
जाने बिना किसी को, यूं नजरों में खास न कर...
माना कि तुम भी लगा बैठे हो दिल किसी से आखिरकार..
इशारो की आराधना को,सबके सामने यूं अब फ़ाश न कर..
✍ Kavish

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