कितने अदबनव़ाज है

पर काट दिए जिस पंछी के, भरने को फिर भी परवाज है..
कैसे लिखकर बताता हूं जज्बात, अब भी सारे राज है..
दिल से उड़ती भावनाएं , पन्नों पर जाकर ठहर जाती है..
देखने की नजर चाहिए, न जाने कितने अदबनव़ाज है..
✍ Kavish

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