Collab stiksha and Aatish

इस बार सब कुछ साफ हो जाए ये
तो बेहतर है..
इस बार दिल गुस्ताख हो जाए तो बेहतर है..
हाल-ए-दिल छिपा-छिपा कर थक गए हैं हम..
इस बार ये इजहार हो जाए तो बेहतर है..
बैठे है कब से महज एक बौछार के इंतजार में..
इस बार ये बरसात हो जाए तो बेहतर है..
कब से बांधे रखा है अल्फ़ाज़ो को जुबां पर..
इस बार रिहा हर लफ्ज़ हो जाए तो बेहतर है..
हर शब में साथ देकर के थक गया मेहताब भी..
इस बार दीद-ए-यार हो जाए तो बेहतर है..
✍ Satiksha

महफूज कब तक रखूं इस टूटे हुए दिल को..
इस बार तुम्हें भी प्यार हो जाए तो बेहतर है..
ये भटकता राही थक चुका है चलते-चलते..
इस बार सब तूफान थम ही जाए तो बेहतर है..
यहां बरसात गिरी तो है पर तू साथ नही..
इस बार मेह का कजरी, मल्हार हो जाए तो बेहतर है..
तन्हाई के आलम में खुद को ही नोचने लगा है मन..
इस बार तू हम-नफ़स हो जाए तो बेहतर है..
✍ Aatish Kumar

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