मेरे हो

माना कि अब तक,खफा-खफा थे तुम..
ख्वाबों की नजदीकियों में भी,जुदा-जुदा थे तुम..
हर शायरी का हर हर्फ,हारा था तुम पर..
मीठी झील का भी हर कतरा,खारा था तुम पर..
पर आज वक्त एकदम बदल चुका है..
तुम्हारे बिना भी ये शख्स संवर चुका है..
खाली पन्ने , भरी कलम अब मुझको अच्छे लगते है..
मेरे लिखे शब्दों के मोती अब,मुझको सच्चे लगते है..
पर अब भी हमारे रिश्ते को,मैं जफ़ा नही कहता..
अपना भी नही कहता मैं, इसको वफा नही कहता..
जब टूट चुका था मैं संवारा था तुमने..
मुझको जिताकर तब,सब कुछ हारा था तुमने..
ना होकर भी अपने , आज भी तुम मेरे हो..
मैं बिखरी-बिखरी काली रात,जिसके तुम सवेरे हो..
Kavish

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